Friday, September 22




अजानें मेरी भी थी ऐ ख़ुदा, मौके ईद के ना थे..
नूर के लिए दामन मेरा भी फैला था, मगर चराग उम्मीद के ना थे...
हर आहट पर....हर आहट पर... आगे बढ़ के खोला मैंने दरवाज़ा...
मगर अफ़सोस..अफ़सोस की आने वाले कदम मेरे महबूब के न थे.

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