ये शाम-ए-गम के साए
और आरजुओं की तन्हा राहें
जिन्दगी को काश मिलती
तेरी पलकों की पनाहें
निगाहों में तेरे ख्वाब
ख़्वाबों में तेरी निगाहें
निगाहों की आहों में हैं
शायद निगाहों की ही खताएं
कभी अश्कों में ढले ख्वाब
कभी ख़्वाबों की वो बेबाक चाहें
जिस राह गुजरे थे तेरे कदम कभी
वो राह चूमती हैं
अब तक ये निगाहें
तुम्हें शायद अपनी मंजिल मिल गयी हो
पर मेरे कदम फिर उठ नहीं पाए
कदमों को लगा , यही हैं मंजिल
हाँ, मेरी मंजिल हों शायद , तुम्हारी यादों के साए.....
कभी हवाएं बन के दूर ले जाएं
कभी पंछी बन के थके से लौट आयें
कभी दर्द बन के आँखों से बह जाएँ
कभी खुशबू बन के मन को महकाएं
हाँ, तुम्हारी यादों के साए.....
कभी फूल, जैसे, शाम को अलसाए
कभी चेहरे हो जैसे खुद को छिपाए
और फिर कभी
रंगों को खोलते
और आरजुओं की तन्हा राहें
जिन्दगी को काश मिलती
तेरी पलकों की पनाहें
निगाहों में तेरे ख्वाब
ख़्वाबों में तेरी निगाहें
निगाहों की आहों में हैं
शायद निगाहों की ही खताएं
कभी अश्कों में ढले ख्वाब
कभी ख़्वाबों की वो बेबाक चाहें
जिस राह गुजरे थे तेरे कदम कभी
वो राह चूमती हैं
अब तक ये निगाहें
तुम्हें शायद अपनी मंजिल मिल गयी हो
पर मेरे कदम फिर उठ नहीं पाए
कदमों को लगा , यही हैं मंजिल
हाँ, मेरी मंजिल हों शायद , तुम्हारी यादों के साए.....
कभी हवाएं बन के दूर ले जाएं
कभी पंछी बन के थके से लौट आयें
कभी दर्द बन के आँखों से बह जाएँ
कभी खुशबू बन के मन को महकाएं
हाँ, तुम्हारी यादों के साए.....
कभी फूल, जैसे, शाम को अलसाए
कभी चेहरे हो जैसे खुद को छिपाए
और फिर कभी
रंगों को खोलते
और अपनी खुशबू को पहनते
सुबहों की ओस में जैसे
ताज़ा गुलाब हो नहाए
हाँ, तुम्हारी यादों के साए.....
सुबहों की ओस में जैसे
ताज़ा गुलाब हो नहाए
हाँ, तुम्हारी यादों के साए.....
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