ये पत्थर अगर टूट सकें
तो फिर झरना फूट पड़ेगा
और बहने लगेगा जीवन
बस तब तक प्रयास की
और हिम्मत की है ज़रुरत,
बस थोड़ा मुश्किल है ये दौर
और कुछ कठिन हैं राहें
मगर ये कीमत कुछ ज्यादा नहीं
उसके लिए, जो पाना है,
माना कि पहरे पत्थरों के मज़बूत बहुत हैं
मगर इतनी हिफाजत तो होनी ही चाहिए
जीवन पीयूष के लिये ,
नहीं तो कैसे बच पायेगा ये उनके खातिर
जो इसकी क़द्र जानते हैं,
और फिर यकीन हैं जिन्हें
अपनी प्यास की सच्चाई पर
वो फिर पत्थरों के होने से
नहीं हैं निराश.
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