फिर एक मछुवार आया. उसने उन आँखों पे जाल फेंका और तड़पते हुए सपनों को अपने कंधों पर डाल चला गया .
आँखों का समंदर अभी भी उतना ही गहरा था या शायद आंसुओं से और भी गहरा हो गया था , मगर बिना जिन्दगी के , बस अपनी वीरानी में डूबा हुआ . उसके ख़्वाबों की ताबीर अब मछुवारे की भूख मिटाने की शक्ल में हो रही थी .
" क्या हर समंदर के साथ यही होता है ? क्या ख्वाब कभी भी अपनी सी शक्ल इख्तियार नहीं करते ? क्या वे हमेशा किसी मछुवारे की भूख मिटाने के ही काम आते हैं ?"
फिर किसी दिन, देर तक, उन आँखों के समंदर को छुप के देखता हुआ, मै बस यही सोचता रहा .